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ITR अन्तिम तिथि 31 जुलाई तक, ऐसे चुने अपने लिए कर व्यवस्था

आयकर विभाग ने वित्त वर्ष 2023-24 के लिए आयकर रिटर्न (आईटीआर) भरने की सुविधा शुरू कर दी है। करदाता ऑनलाइन या ऑफलाइन दोनों ही तरीके से इसे दाखिल कर सकते हैं। ध्यान देने वाली बात यह है कि करदाता को नई या पुरानी कर व्यवस्था में से किसी एक को चुनना होगा। विशेषज्ञों के अनुसार, दोनों के अपने फायदे हैं। करदाता को अपनी जरूरत और निवेश रणनीति के अनुसार ही चयन कर आईटीआर दाखिल करना चाहिए।

कर व्यवस्था का चयन जरूरी

आयकर कानून के अनुसार, नई कर व्यवस्था डिफाल्ट व्यवस्था है यानी करदाता के लिए यह पहले से ही लागू है। इसका मतलब है कि करदाता को हर साल कर स्लैब का चुनाव करना होगा। यदि कोई वेतनभोगी करदाता पुरानी व्यवस्था को चाहता है तो उसे नए वित्त वर्ष की शुरुआत में अपने नियोक्ता को इस संबंध में सूचित करना होगा।

अगर वह ऐसा नहीं करता है तो वह अपने आप नई कर व्यवस्था में आ जाएगा और इसके तहत तय आयकर स्लैब के आधार पर उसके वेतन से आयकर काटा जाएगा। वित्त वर्ष 2024-25 में भुगतान किए गए अतिरिक्त कर के लिए आयकर रिफंड का दावा करने के लिए उन्हें अगले वित्तीय वर्ष तक इंतजार करना होगा

कर छूट में बड़ा अंतर

पुरानी और नई आयकर व्यवस्था के पुराना बीच मुख्य अंतर इनके तहत प्राप्त कर के तहत करदाता पर्याप्त कटौती का छूट और कटौतियां हैं। पुरानी व्यवस्था दावा कर सकते हैं, जिसमें मानक कटौती के साथ धारा 80सी, धारा 80डी और धारा 80 टीटीए में निर्दिष्ट कर छूट शामिल हैं। पुरानी कर व्यवस्था में एक वेतनभोगी व्यक्ति कुल 2.5 लाख रुपये की कटौती का दावा कर सकता है। इसके विपरीत नई व्यवस्था चुनने वाले करदाता को केवल 50 हजार रुपये की मानक कटौती का ही लाभ मिलेगा।

समय पर आईटीआर दाखिल करना जरूरी

यदि आप पुरानी कर व्यवस्था का विकल्प चुन रहे हैं तो यह भी सुनिश्चित कर लें कि आईटीआर 31 जुलाई तक की समय सीमा तक जरूर दाखिल कर दें। तभी इसमें दी गई कर छूट का फायदा ले पाएंगे। यदि कोई व्यक्ति 31 जुलाई के बाद विलंबित आईटीआर दाखिल करता है तो कर देनदारी नई कर व्यवस्था के आधार लागू होगी।

वेतनभोगी बदल सकते हैं कर व्यवस्था

यदि कोई करदाता अपने नियोक्ता को सूचित करने में विफल रहता है, तब भी रिटर्न दाखिल करते समय कर व्यवस्था को बदल सकता है। बशर्ते यह नियत तारीख के भीतर किया गया हो।

किसके लिए कौन-सी व्यवस्था सही

कर विशेषज्ञ कहते हैं कि अपनी निवेश जरूरतों के हिसाब से करदाता को सही व्यवस्था का चुनाव करना चाहिए। अगर करदाता आयकर की धारा 80 सी या 80डी के तहत निवेश करते हैं या होम लोन है या बच्चे स्कूल/कॉलेज में पढ़ते हैं तो पुरानी कर व्यवस्था के अनुसार रिटर्न दाखिल करना चाहिए। वहीं, अगर किसी भी प्रकार का निवेश या बचत नहीं करते हैं तो नई व्यवस्था के अनुसार रिटर्न दाखिल कर सकते हैं। नई व्यवस्था में इस तरह की कोई छूट नहीं मिलती। कर विशेषज्ञ यह भी सलाह देते हैं कि अगर किसी की आय 10 लाख रुपये से ज्यादा है तो बेहतर होगा कि अभी से निवेश शुरू कर दें ताकि आयकर बचाया जा सके और यह निवेश भविष्य में भी काम आ सके।

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