उत्तरप्रदेश में भाजपा यूं ही चित नहीं हुई। दिल्ली दरबार के सीधे फैसलों और संघ की बेरुखी, अधिकारियों द्वारा पार्टी कार्यकर्ताओं के कार्यों की अनदेखी ने भाजपा को उत्तरप्रदेश में चारो खाने चित्त कर दिया।
मिशन-80 का लक्ष्य तय करने वाली भाजपा प्रदेश में 33 सीटों पर सिमट गई। पार्टी के यूपी में खराब प्रदर्शन के पीछे जातीय समीकरणों की अनदेखी, दिल्ली दरबार से सीधा टिकट वितरण, कुछ सांसदों का अहंकार और कार्यकर्ताओं की अनदेखी सबसे प्रमुख कारण रहे। नतीजा यह हुआ कि मोदी-योगी की जोड़ी भी अलोकप्रिय सांसदों को जीत नहीं दिला सकी।
प्रदेश संगठन के बार-बार कहने के बावजूद कार्यकर्ताओं ने वोटरों को घरों से निकालने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। पार्टी के कई नेताओं ने दबी जुबान से कहा कि जब सारे फैसले दिल्ली से हो रहे हैं और कार्यकर्ताओं के कार्यों की लगातार अधिकारियों ने उपेक्षा की तथा प्रदेश सरकार ने ही कार्यकर्ताओं को हाशिए पर डाल दिया, उनकी कोई भागीदारी ही नहीं है, वह जनता के काम ही नहीं करवा पाये तो इतनी भीषण गर्मी में कार्यकर्ता ही जान की बाजी क्यों लगाएं?
बीते समय में भाजपा में तमाम छोटे-बड़े फैसलों पर हाईकमान का सीधा असर दिखा है। यहां तक कि जिलाध्यक्षों के बदलाव का फैसला भी दिल्ली की मुहर के बाद ही हो सका। वहीं जोड़-तोड़ कर टिकट पाने वाले सांसदों ने भी मान लिया कि 2014 और 2019 की तर्ज पर मोदी नाम का जाप करके वह चुनावी वैतरणी पार कर लेंगे।
भाजपा के उदय से अब तक संघ की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। यह शायद पहला चुनाव था, जिसमें पूरे प्रदेश में आरएसएस और उससे जुड़े अन्य संगठन बिल्कुल निष्क्रिय दिखे। संगठन और सरकार से जुड़े तमाम फैसलों में संघ बड़ी भूमिका निभाता रहा है। फिर चाहे वो विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति हो या संगठन से लेकर निगमों, बोर्डों आदि में नियुक्तियां, टिकट वितरण में भी संघ की राय खासा महत्व रखती थी। मगर बीते कुछ समय में सत्ता और संगठन के गलियारों में संघ की भूमिका की जमकर अनदेखी हुई है। भाजपा में सर्वे के बाद ही प्रत्याशी चयन किया जाता है। परन्तु भाजपा की 51 नामों वाली पहली सूची में ही कई ऐसे सांसदों को प्रत्याशी घोषित कर दिया जिनकी जमीनी रिपोर्ट बेहद खराब थी। भाजपा के लिए 26 मौजूदा सांसदों की हार को भी भाजपा के लिए बड़ा संदेश माना जा रहा है। मनमाने ढंग से टिकट बंटवारे का भाजपा को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है। भाजपा के दिल्ली दरबार ने अधिकांश सांसदों के खिलाफ स्थानीय में असंतोष को समझे बिना ही टिकट दे दिया। ऐसे में सात केंद्रीय मंत्रियों समेत कुल 26 मौजूदा सांसदों को सीट गंवानी पड़ी है।
अयोध्या में राम मंदिर के शिलान्यास और फिर भव्य मंदिर में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा से लोकसभा चुनाव से पहले उपजी रामलहर से भाजपा उत्साहित थी। हालांकि सच यह भी है कि राम मंदिर में दर्शन के लिए पूरे देश से श्रद्धालुओं का तांता देखकर उसका यह उत्साह अति आत्म विश्वास में बदल गया। इसका नतीजा यह रहा कि भाजपा ने चुनाव में सोशल इंजीनियरिंग की पूरी तरह अनदेखी कर दी। फैजाबाद समेत उसके अगल-बगल की सभी सीटों पर भाजपा ने केवल अगड़ी जाति के उम्मीदवार उतार दिए। गोंडा, कैसरगंज, बस्ती, अंबेडकरनगर, अमेठी व सुलतानपुर में से किसी भी सीट पर भाजपा ने पिछड़ी जाति का उम्मीदवार नहीं दिया। इससे सपा का ‘पीडीए’ का दांव भाजपा पर भारी पड़ गया। इन सीटों में से केवल गोंडा व कैसरगंज में ही भाजपा को जीत मिली।